अटल शताब्दी वर्ष पर ‘सनातन संस्कृति की अटल दृष्टि’ पुस्तक का उपराष्ट्रपति ने किया लोकार्पण

23 Dec 2025 18:10:01
प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित और राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी द्वारा लिखित पुस्तक “सनातन संस्कृति की अटल दृष्टि” के विमोचन के अवसर पर मौजूद उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी व अन्य


नई दिल्ली, 23 दिसंबर (हि.स.)। उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने मंगलवार को कहा कि भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तित्व ऐसा था कि उनसे मिलते ही व्यक्ति की सारी थकान दूर हो जाती थी और भीतर ऊर्जा का संचार होता था। अटल जी ने अपने नाम को ‘अटल’ कहकर केवल उच्चारण नहीं किया बल्कि सिद्धांत और मूल्यों के प्रति अपनी अडिग निष्ठा को जीवनभर निभाया। उनके जैसा सरल, सहज और सिद्धांतों से समझौता न करने वाला व्यक्तित्व दूसरा कोई नहीं हो सकता।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जन्म शताब्दी वर्ष पर प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित और राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी द्वारा लिखित पुस्तक “सनातन संस्कृति की अटल दृष्टि” का मंगलवार को यहां उपराष्ट्रपति एनक्लेव में लोकार्पण समारोह में उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन, केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष प्रो. मिलिंद मराठे और राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी समेत तमाम लोग मौजूद रहे।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह पुस्तक सही समय पर प्रकाशित हुई है, जब देश अटल जी का शताब्दी वर्ष मना रहा है। 25 दिसंबर को उनकी 100वीं जयंती मनाई जाएगी और यह पुस्तक उनके विचारों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम बनेगी। उन्होंने वासुदेव देवनानी को इस पुस्तक लेखन के लिए साधुवाद देते हुए कहा कि यह कृति अटल जी के जीवन और विचारों से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है।

नितिन गडकरी ने कहा कि सनातन संस्कृति को पिछले कई दशकों से गलत तरीके से जातिवादी दृष्टिकोण बताकर बदनाम किया गया है, जबकि भारतीय संस्कृति, हिंदू संस्कृति और सनातन संस्कृति एक ही हैं। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में दिए अपने ऐतिहासिक भाषण में स्पष्ट किया था कि सभी धर्म और भगवान अंततः एक ही हैं। हमारी संस्कृति संकुचित नहीं है, बल्कि विश्व कल्याण की भावना से शुरू होती है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति कभी यह नहीं कहती कि पहले व्यक्ति या परिवार का कल्याण हो, बल्कि इसकी शुरुआत ही विश्व के कल्याण से होती है।

राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि अटल जी का जीवन सार्वजनिक जीवन में आदर्श और प्रेरणा का स्रोत है। अटल जी के संघ से जुड़े सरोकारों और राष्ट्र प्रथम की सोच ने उन्हें प्रभावित किया और इसी कारण उन्होंने यह पुस्तक लिखी। देवनानी ने कहा कि अटल जी का जीवन हमें सिखाता है कि कैसे एक धर्मपरायण बालक अपने धर्म और संस्कृति से सीखकर उसे सुरक्षित रखता है और राष्ट्रहित में कार्य करता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि अटल जी का व्यक्तित्व स्वतंत्र भारत के लिए वरदान था। आजादी के बाद जब देश में तथाकथित सेक्युलरवाद की हवा चल रही थी, तब अटल जी ने राष्ट्रवाद को जीवित रखा। उन्होंने अपनी कविताओं और वाकपटुता से देशभक्ति को जनमानस में जीवित रखा। अटल जी का सार्वजनिक चरित्र वैसा ही था जैसा हमारी संस्कृति में एक राजा के लिए कहा गया है। अटल जी ने सार्वजनिक जीवन में राजनीतिक नेतृत्व के साथ-साथ सांस्कृतिक परंपरा का चित्र सबके सामने रखा।

राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष प्रो. मिलिंद मराठे ने कहा कि अटल जी केवल प्रधानमंत्री नहीं थे बल्कि देश की राष्ट्रीय चेतना और सांस्कृतिक स्तंभ थे। आजादी के बाद भारत पर थोपे गए मिथकों को मिटाकर आत्मसम्मान और गौरव से भरी वैश्विक पहचान दिलाने का काम अटल जी ने किया। साल 1984 में भिवंडी दंगों के बाद अटल जी ने सभा में कहा था कि अब हिंदू मार नहीं खाएगा, और यह वाक्य उनके लिए जीवनभर आदर्श बना रहा।

मराठे ने कहा कि अटल जी ने संसद में नेहरू जी की अंग्रेजी बहसों का जवाब हिंदी में देकर मातृभाषा का गौरव गान किया और बाद में विदेश मंत्री रहते संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर देश का मान बढ़ाया।

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हिन्दुस्थान समाचार / प्रशांत शेखर

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