वार्ष‍िकी 2025 : हीरों की चमक और जीआई टैग के साथ मध्य प्रदेश ने रचा सफलता का नया अध्याय

29 Dec 2025 14:38:28
मप्र में हीरों की चमक


भोपाल, 29 दिसंबर (हि.स.)। वर्ष 2025 मध्य प्रदेश के लिए एक कैलेंडर वर्ष तक सीमित नहीं रहा है, यह उपलब्धियों, आत्मविश्वास और वैश्विक पहचान का ऐसा पड़ाव साबित हुआ, जिसने प्रदेश को देश-दुनिया में एक नई प्रतिष्ठा दिलाई। इसी दिशा में एक उपलब्‍धि पन्ना और उससे जुड़े बुंदेलखंड क्षेत्र की धरती ने दी। पन्ना के हीरों को भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) मिलना इसी परिवर्तन की सबसे चमकदार मिसाल बनकर सामने आया।

जीआई टैग की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसे मध्य प्रदेश के लिए ऐतिहासिक क्षण बताते हुए कहा था कि “पन्ना के हीरे केवल एक खनिज नहीं, बल्कि प्रदेश की पहचान, परंपरा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं। जीआई टैग मिलने से पन्ना के हीरे अब वैश्विक स्तर पर मध्य प्रदेश का नाम रोशन करेंगे और स्थानीय लोगों के जीवन में स्थायी समृद्धि लाएंगे।” इसके साथ ही मुख्यमंत्री डाॅ. मोहन यादव ने एक अन्य अवसर पर यह भी कहा कि “जीआई टैग से न केवल हीरों की ब्रांड वैल्यू बढ़ेगी, बल्कि इससे युवाओं को रोजगार, कारीगरों को पहचान और प्रदेश को नई आर्थिक दिशा मिलेगी।”

वास्तव में 2025 वह वर्ष रहा, जब पन्ना के हीरों ने इतिहास और वर्तमान को एक साथ जोड़ दिया। सदियों पहले मुगलकाल से लेकर ब्रिटिश शासन तक पन्ना के हीरे विश्व प्रसिद्ध रहे हैं, लेकिन आधुनिक भारत में पहली बार इन्हें कानूनी और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। जीआई टैग ने यह स्पष्ट कर दिया कि पन्ना का हीरा सिर्फ “हीरा” होने तक सीमित नहीं होकर एक विशिष्ट भौगोलिक विरासत है, जिसकी गुणवत्ता और उत्पत्ति पर अब आधिकारिक मुहर है।

2025 में पन्ना की खदानों से निकले बड़े-बड़े हीरे जिसमें कि 15 कैरेट से अधिक वजन वाले हीरे शामिल रहे की खोज राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बनी। इसके अलावा वर्ष भर छोटे-बड़े कई हीरे मिलने की खबरें आती रहीं। कभी किसी किसान की किस्मत चमकी, तो कभी किसी महिला मजदूर या चरवाहे का जीवन एक खोज के साथ बदल गया। इन घटनाओं ने यह स्पष्ट किया कि पन्ना में हीरा उद्योग या सरकार तक सीमित नहीं है, ये आम आदमी के सपनों से भी जुड़ा हुआ है।

मुख्यमंत्री का इसे लेकर कहना यह भी है कि “पन्ना के हीरे यह साबित करते हैं कि मध्य प्रदेश की धरती में अपार संभावनाएँ हैं। सरकार का प्रयास है कि इस प्राकृतिक संपदा का लाभ सीधे स्थानीय लोगों तक पहुँचे।” यह बयान 2025 की उस नीति का संकेत था, जिसमें सरकार पारदर्शी नीलामी, वैध खनन और स्थानीय भागीदारी पर जोर देती दिखी।

उल्‍लेखनीय है कि, राष्ट्रीय स्तर पर पन्ना के हीरों और जीआई टैग को आत्मनिर्भर भारत की सोच से जोड़ा गया। भारत, जो लंबे समय से दुनिया का सबसे बड़ा हीरा कटिंग-पॉलिशिंग केंद्र रहा है, अब प्राकृतिक हीरों के स्रोत के रूप में भी अपनी स्थिति मजबूत करता दिखा। 2025 में यह संदेश गया कि भारत केवल आयातित कच्चे हीरों पर निर्भर नहीं है, उसके पास अपनी विशिष्ट प्राकृतिक विरासत भी है।

वैश्विक दृष्टि से देखें तो जीआई टैग ने पन्ना डायमंड को अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक अलग पहचान दी। सरकार के स्तर पर यह भी महसूस किया गया कि हीरा खनन तक सीमित विषय नहीं है। 2025 में “डायमंड टूरिज्म”, कौशल विकास, जेम्स एंड ज्वेलरी प्रशिक्षण और स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा देने जैसी योजनाओं पर विचार हुआ। यह सोच बताती है कि मध्य प्रदेश अब हीरों को समग्र विकास मॉडल के रूप में देख रहा है।

इन सभी घटनाओं, बयानों और उपलब्धियों को जोड़कर देखें तो 2025 स्पष्ट रूप से मध्य प्रदेश के लिए सफलता का वर्ष रहा। यह वर्ष उस बदलाव का प्रतीक बन गया, जब पन्ना के हीरे केवल खबरों की सुर्खियाँ नहीं रहे, बल्कि नीति, पहचान और विकास की धुरी बन गए। जीआई टैग ने पन्ना को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित किया, वहीं मुख्यमंत्री और सरकार के उत्साहवर्धक वक्तव्यों ने यह भरोसा दिलाया कि यह उपलब्धि केवल शुरुआत है। अंततः कहा जा सकता है कि 2025 में पन्ना के हीरों की चमक ने मध्य प्रदेश की छवि को नई ऊंचाई दी है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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