‘समता के सुर में जीवन का जयगान’ तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम गुवाहाटी में

06 Dec 2025 22:23:00
‘समता के सुर में जीवन का जयगान’ सांस्कृतिक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस नेता वशिष्ठ बुजरबरुवा की तस्वीर।


‘समता के सुर में जीवन का जयगान’ तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम की तस्वीर।


‘समता के सुर में जीवन का जयगान’ तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम की तस्वीर।


गुवाहाटी, 06 दिसंबर (हि.स.)। डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति, गुवाहाटी और बाल्मीकि संगीत विद्यालय, गुवाहाटी द्वारा संयुक्त रूप से “समता के सुर में जीवन का जयगान” शीर्षक से तीन दिवसीय सांस्कृतिक एवं सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय संविधान के मूल मूल्यों —समता, न्याय, एकता, सामाजिक सद्भाव और नागरिक कर्तव्य— को संस्कृति और परंपरा के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाना है।

कार्यक्रम का लक्ष्य युवाओं में सामाजिक जिम्मेदारी, राष्ट्रीय चेतना और सांस्कृतिक गर्व की भावना को प्रेरित करना है। तीन दिनों में गुवाहाटी के चार अलग-अलग स्थानों पर आयोजित हो रहे इस कार्यक्रम का उद्घाटन 4 दिसंबर को हुआ, मुख्य सांस्कृतिक प्रस्तुति 6 दिसंबर को तथा समापन समारोह 7 दिसंबर को होगा। कार्यक्रम में असमिया लोकसंस्कृति और परंपरागत कला रूपों का विविधतापूर्ण प्रदर्शन किया गया, जिसमें लोक नृत्य, लोक संगीत, शास्त्रीय नृत्य, देशभक्ति एवं भक्ति गीत, सामुदायिक नृत्य और विभिन्न जनजातीय नृत्य शैलियां शामिल थीं। सफाई कर्मचारियों की बेटियों ने पूरे गुवाहाटी से आकर प्रस्तुतियां दीं, जो सामाजिक समानता और एकता के संदेश को उजागर करती रहीं। इस पहल के जरिए आयोजक महिलाओं की शिक्षा, सामाजिक मूल्यों की मजबूती और एकात्म राष्ट्रीय पहचान के निर्माण पर भी कार्य कर रहे हैं।

मुख्य कार्यक्रम आज नेहरू स्टेडियम, गुवाहाटी में भारी दर्शक उपस्थिति के बीच संपन्न हुआ। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के असम क्षेत्र प्रचारक बशिष्ठ बुजरबरुवा और असम के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री जयंत मल्ल बरुवा सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। अनुशासित और प्रभावशाली प्रस्तुतियों ने दर्शकों का मन मोह लिया, विशेषकर माताओं द्वारा दी गई प्रस्तुतियों ने पूरे सभागार से व्यापक सराहना प्राप्त की।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध कलाकार गायत्री महंत ने सफाई कर्मचारी परिवारों की बेटियों द्वारा भूपेन हजारिका और जुबिन गर्ग जैसे महान कलाकारों के गीतों पर प्रस्तुत किए गए मनमोहक नृत्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि इस मंच ने सफाई कर्मचारियों के बेटे-बेटियों को आगे आने का एक मूल्यवान अवसर दिया है। भावपूर्ण माहौल में उन्होंने स्वयं “मानुहे मानुहर बाबे” गीत प्रस्तुत किया, जिसे पूरे दर्शकों ने उत्साहपूर्वक गाया।

अपने संबोधन में मंत्री जयंत मल्ल बरुवा ने सभी कलाकारों और आयोजकों की अर्थपूर्ण और भावनात्मक प्रस्तुतियों के लिए सराहना की। उन्होंने कहा कि 6 दिसंबर डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि है और समाज में समता स्थापित करने के उनके अमर योगदान को याद करना हम सबका कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम केवल सांस्कृतिक आयोजन नहीं बल्कि “समता” की जीवंत अभिव्यक्ति है, जो समाज को एकजुट होकर चलने का संदेश देता है। श्रीमंत शंकरदेव और माधवदेव समेत असम के महान आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महापुरुषों पर आधारित प्रस्तुतियां देखकर वे भावविह्वल हो गए। उन्होंने कहा कि सच्चा “जीवन का गीत” विविधता में एकता में ही निहित है और “बर असम” की अवधारणा सबको समाहित करती है। अंत में उन्होंने इस प्रेरक पहल के लिए डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति को धन्यवाद् दिया।

आरएसएस असम क्षेत्र प्रचारक बशिष्ठ बुजरबरुवा ने अपने संबोधन में भारत की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह भूमि भारत और हिंदुस्थान के नाम से जानी जाती है और भारत माता की हम सभी संतति हैं। अलग-अलग नाम और पहचान होने के बावजूद हमारी एक साझा पहचान — भारतीयता — है। उन्होंने कहा कि भारत की इस धरती पर डॉ. भीमराव अंबेडकर और डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जैसे महान व्यक्तित्वों ने जन्म लिया। बाल कलाकारों के साथ संवाद से शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति ने सामाजिक उत्थान के उद्देश्य से बाल्मीकि संगीत विद्यालय की स्थापना की थी। उन्होंने डॉ. अंबेडकर के उस वक्तव्य का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी पहचान भारतीय से शुरू होकर भारतीय पर ही समाप्त होती है और यही समता का सर्वोच्च संदेश है।

उन्होंने कहा कि डॉ. अंबेडकर ने कभी हिंदू धर्म की आलोचना नहीं की बल्कि हिंदू समाज के उत्थान के लिए जीवनभर कार्य किया। हिंदू शास्त्रों के उनके अध्ययन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी धर्मग्रंथ ने भेदभाव को समर्थन नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि अपनी भारतीय पहचान की रक्षा के लिए डॉ. अंबेडकर ने इस्लाम या ईसाई धर्म में प्रवेश नहीं किया और बौद्ध धर्म को अपनाया। उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. अंबेडकर आरएसएस के कार्यकर्ताओं से परिचित थे और संगठन के चरित्र को भलीभांति समझते थे। जीवन के व्यापक उद्देश्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को केवल अपने लिए नहीं बल्कि भारत माता के लिए जीना चाहिए और राष्ट्रधर्म ही सर्वोच्च धर्म है जिसके लिए अंतिम सांस तक कार्य करना चाहिए।

कार्यक्रम में सभी समुदायों और आयु वर्गों के लोगों की उत्साही भागीदारी देखने को मिली, जिसने यह संदेश और मजबूत किया कि सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समता ही एक सशक्त राष्ट्र की नींव है। आयोजकों ने आशा व्यक्त की कि ऐसे कार्यक्रम संविधानिक मूल्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और समाज की सांस्कृतिक चेतना को मजबूत करने में निरंतर योगदान देते रहेंगे।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीप्रकाश

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