
नई दिल्ली 09 दिसंबर (हि.स.)। विश्व हिंदू परिषद के विश्व समन्वय विभाग में महामंत्री रहे मोहनधर दीवान का आज निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे। मंगलवार को प्रात: 11 बजे उन्होंने दक्षिणी दिल्ली स्थित नेशनल हार्ट इंस्टीट्यूट में 91 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली।
यह जानकारी विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर दी। उन्होंने बताया कि उनका अन्तिम संस्कार बुधवार 10 दिसंबर को प्रात: 11 बजे इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) के लोधीरोड शमशान घाट पर किया जाएगा।
बंसल ने बताया कि छत्तीसगढ़ के चांपा साहब में मई 1935 में जन्मे मोहनधर दीवान के परिवार में उनकी पत्नी शैल कुमारी, दो बेटे और एक बेटी है। वे कई वर्षों से बीमार चल रहे थे किंतु वे अपने निवास स्थान पर लेटे-लेटे समाज का सदैव चिंतन करते रहते थे। मुझे उनसे कई बार मिलने और उनका आशीर्वाद पाने का सौभाग्य मिला। ऐसे महात्मा के महाप्रयाण पर प्रभु से यही प्रार्थना करता हूं की वे उनकी पुण्य आत्मा को तो सद्गति देंगे ही उनके परिजनों को साहस और हम सबको सदैव उनके मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देते रहेंगे।
विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री व विश्व समन्वय विभाग के प्रमुख पूज्य स्वामी विज्ञानानंद ने भी विहिप की ओर से उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है।
उल्लेखनीय है कि मोहनधर दीवान जी एक सामान्य व्यक्ति ही नहीं, बल्कि कर्मठ समाजसेवी, विद्वान तथा एक जुझारू हिंदू नेता भी थे। 1959 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से केमिकल इंजीनियरिंग की परीक्षा पास कर उन्होंने कई बड़ी-बड़ी कंपनियों में वरिष्ठ पदों पर सेवा की।
सेवा निवृत्ति के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन हिंदू धर्म, संस्कृति और श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए सौंप दिया। विश्व हिंदू परिषद के विश्व समन्वय विभाग में महामंत्री और उपाध्यक्ष के तौर पर उन्होंने अनेक वर्षों तक काम किया।
उसके बाद माननीय अशोक सिंघल जी ने उन्हें हिंदू -बौद्ध समन्वय की जिम्मेदारी दी। उन्हीं के प्रयासों ने अशोक सिंघल जी को परम पावन श्री दलाई लामा से मिलवाया तथा विश्व हिंदू परिषद के अनेक मंचों पर उनके आशीर्वचन करवाए।
श्री राम जन्मभूमि के एक मामले में उन्होंने एक ऐसा अनुपम कार्य किया जिसकी किसी को कोई कल्पना भी नहीं थी। दिल्ली के लोधी रोड स्थित एक फ्रेंच लाइब्रेरी से 1786 में फ्रेंच भाषा में छपी एक 600 पेज की पुस्तक हिस्ट्री एंड ज्योग्राफी ऑफ इंडिया' को उन्होंने ढूंढ निकाला जो कि श्री राम जन्मभूमि मुक्ति के संबंध में दिए गए 2010 के उच्च न्यायालय और 2019 के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हिस्सा बनी। उनके दादा जी ने पंडित मदन मोहन मालवीय जी के साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के समय धन संग्रह करने में उनके साथ मिल कर योगदान दिया था।
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रभात मिश्रा