सिवनी, 11 मई (हि.स.)। विश्वविख्यात पेंच नेशनल पार्क में प्रकृति व वन्यप्राणी प्रेमी चेन्नई निवासी कुनाल गोयल बीते 10 मई से पेंच में आये हैं। वह पहले भी पेंच आये हैं। वह पेंच नेशनल पार्क प्रबंधन के बारे में कहते हैं कि सुबह , शाम सफारी अच्छी तरह से व्यवस्थित सफारी है। टुरिया , कर्माझिरी जमतरा प्रवेश द्वार वह गये हैंं। खास तौर से गर्मियों के महीने में देखने लायक जगह प्रकृति सौंदर्य से भरपूर है। जहां वन्यप्राणी सहित प्राकृतिक सौंदर्य को उन्होंने बड़े करीब से देखा है और उनका मन हमेशा पेंच आने के लिए लालायित रहता है।
उल्लेखनीय है कि कालर वाली बाघिन (बडी मादा बाघिन) की बेटी लगडी की वंशज काला पहाड है उसके तीन बच्चें है। प्रकृति व वन्यप्राणी प्रेमी चेन्नई निवासी कुनाल गोयल ने रविवार को हिस को बताया कि टुरिया पेंच टाईगर रिजर्व (अलीकट्टा वाटरहोल) में उन्हें काला पहाड मादा बाघ और उसके शावको की तस्वीर लेने का सौभाग्य मिला है। कुनाल कहते है कि पेंच टाइगर रिजर्व वास्तव में भारत के सबसे प्रसिद्ध बाघ रिजर्वों में से एक है, और कई वन्यजीव उत्साही इसे सर्वश्रेष्ठ में से एक मानते हैं। यहाँ एक विस्तृत तुलना दी गई है, जिससे आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि यह कैसे अलग है और अन्य शीर्ष रिजर्वों की तुलना में यह कैसा है।
पेंच क्यों खास हैमध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में फैले पेंच टाइगर रिजर्व का नाम पेंच नदी से पड़ा है जो इसके बीच से बहती है। मध्य प्रदेश वाला हिस्सा पर्यटन के लिए ज़्यादा लोकप्रिय है। वनस्पति और जीव बाघों के अलावा, पेंच में तेंदुए, सुस्त भालू, जंगली कुत्ते (ढोल), भारतीय बाइसन (गौर) और पक्षियों की 300 से ज्यादा प्रजातियाँ पाई जाती हैं। सागौन और मिश्रित वनों का परिदृश्य इसे एक खूबसूरत, खुले जंगल का एहसास देता है।
साहित्य के लिए प्रेरणापेंच को अक्सर रुडयार्ड किपलिंग की द जंगल बुक से जोड़ा जाता है, और माना जाता है कि यहीं से इसकी प्रेरणा मिली।
एक ऐसा बंधन जो किसी और से अलग है : पेंच टाइगर रिजर्व में काला पहाड़ मादा अपने शावक के साथपेंच के घने जंगलों के बीच, प्रकृति के सबसे कोमल बंधनों में से एक चुपचाप सामने आता है - एक बाघिन और उसके शावकों का। डरावनी आँखों और शक्तिशाली चाल के पीछे एक बेहद सुरक्षात्मक माँ छिपी हुई है, जिसकी दुनिया उन छोटे, धारीदार जीवों के इर्द-गिर्द घूमती है जो हर कदम पर उसका पीछा करते हैं। वह उन्हें पीछा करना, सुनना, जीवित रहना सिखाती है - शब्दों से नहीं, बल्कि जंगल में साझा किए गए हर आंदोलन और अपने पल के माध्यम से।
उनकी आँखों में एक अनकही भाषा है- शावकों में जिज्ञासा, माँ में धैर्य। वह आगे चलती है, अपने छोटे बच्चों को पकड़ने के लिए अक्सर रुकती है। हर धक्का, गुर्राहट और नज़र एक सबक है। उसके बगल में वे जो भी झपकी लेते हैं वह सुरक्षा और विश्वास की कहानी है।
लेंस के माध्यम से इस बंधन को कैद करना केवल वन्यजीव फोटोग्राफी के बारे में नहीं है - यह मातृत्व के सबसे शुद्ध रूप को देखने के बारे में है। ऐसी दुनिया में जहाँ जीवित रहना एक दैनिक चुनौती है, यह संबंध नाजुक और शक्तिशाली दोनों है। ऐसे क्षण हमें याद दिलाते हैं कि जंगल न केवल कच्चा और जंगली है, बल्कि बहुत भावनात्मक भी है। बाघिन अपने इलाके की रानी हो सकती है, लेकिन अपने शावकों के लिए, वह बस और गहराई से उनकी पूरी दुनिया है। एक मां के रूप में वह शावक के लिए उसका सबकुछ है।
हिन्दुस्थान समाचार / रवि सनोदिया