कमारकुची (गुवाहाटी), 23 सितम्बर (हि.स.)। मंगलवार को असम के सबसे प्रिय सांस्कृतिक सितारे ज़ुबीन गर्ग को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। जैसे ही उनके शव का अंतिम संस्कार हुआ, पूरा कमारकुची एनसी गांव और राज्य “मायाबिनी” की स्वर लहरियों से गूंज उठा।
ज़ुबीन ने वर्ष 2019 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था कि “मायाबिनी” उनका सपना है और जब वह इस दुनिया से जाएंगे तो पूरा असम यह गीत गाए। उनकी यह भविष्यवाणी मंगलवार को सच साबित हुई, जब लाखों लोग अंतिम संस्कार स्थल पर और असंख्य लोग यूट्यूब लाइव प्रसारण के जरिये इस धुन के साथ उनके विदाई क्षण में शामिल हुए।
मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, फिल्म और संगीत जगत की हस्तियां तथा साधारण नागरिक इस भावुक अवसर पर मौजूद रहे। उनकी बहन पाल्मे बरठाकुर सहित तीन अन्य परिजनों ने मुखाग्नि दी, जिनमें संगीतकार राहुल गौतम, शिष्य अरुण गर्ग भी शामिल थे। पुजारियों ने वैदिक मंत्रोच्चार किया। इस दौरान शंखध्वनि और पुलिस की ओर से गन सलामी दी गई। उनकी पत्नी गरिमा सैकिया गर्ग मंच पर विलाप करती दिखीं। विशेष तौर पर, 2017 में ज़ुबीन द्वारा अपने जन्मदिन पर लगाया गया चंदन का पौधा भी चिता पर अर्पित किया गया।
उनकी अंतिम यात्रा किसी साधारण शवयात्रा की बजाय सांस्कृतिक यात्रा में तब्दील हो गई। फूलों से सजे कांच के ताबूत और असमिया गमछा में लिपटे उनके पार्थिव शरीर को जब सड़कों से गुज़ारा गया तो लोग उनके नाम का जयघोष करते रहे।
अंतिम क्षणों में जैसे ही बिगुल बजा और सलामी की गोली दागी गई, भीड़ ने एक स्वर में “मायाबिनी रातिर बुकू” गाया। यह स्वर शोक में डूबा हुआ था, लेकिन श्रद्धा और प्रेम से भरा हुआ भी।
यह सिर्फ़ किसी गायक का अंतिम संस्कार नहीं था, बल्कि उस सांस्कृतिक प्रतीक को विदाई थी, जिसने असम को पीढ़ियों तक अपनी आवाज़ दी।
“मायाबिनी” की धुन में सिमटा उनका सपना अब असम का अनंत गीत बन गया है। चिता की लपटों में विलीन होते उनके शरीर के साथ उनकी रचना अमर हो गई ... ज़ुबीन गर्ग का स्वर अब कभी ख़ामोश नहीं होगा।
मुख्यमंत्री सरमा ने जुबिन की महानता सुनाते हुए दत्तक पुत्र की कथा बताई
असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा ने दिवंगत गायक जुबिन गर्ग को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके करुणामय स्वभाव और सभी वर्गों से गहरे जुड़ाव को याद किया। मुख्यमंत्री ने बताया कि जुबिन गर्ग के अंतिम संस्कार में मुखाग्नि देने वालों में एक युवक अरुण गर्ग भी शामिल था। अरुण का जन्म एक आदिवासी चाय बगान परिवार में अरुण ससोनी के रूप में हुआ था। जुबीन ने उसे गुवाहाटी लाकर अपने परिवार का हिस्सा बनाया और अपने उपनाम गर्ग से सम्मानित किया। मुख्यमंत्री ने कहा, “जुबिन एक सच्चे कलाकार थे, जो धरती और लोगों की बात करते थे। अरुण को अपने परिवार में अपनाना और अपना उपनाम देना उनके हृदय की निर्मलता को दर्शाता है।”
हिन्दुस्थान समाचार