नई दिल्ली, 27 सितंबर (हि.स.)। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में 25 से 27 सितंबर तक आयोजित तीन दिवसीय छठे नदी उत्सव' के अंतिम दिन शनिवार को 'रिवर ऑफ रेज़ोनेंसः शरावती शिवमोग' और 'कावेरी: जीवन की नदी' सहित कई वृत्तचित्र फिल्में दिखाई गईं।
रिवर ऑफ रेज़ोनेंस: शरावती शिवमोग फिल्म के निर्माता-निर्देशक याजी हैं। कन्नड़ में निर्मित यह फिल्म शरावती नदी पर केंद्रित है। फिल्म को प्रकृति और बदलते पर्यावरण पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए फिल्माया गया है। इसमें दिखाया गया है कि नदी और एक लड़के के बीच ‘माँ-बेटे’ जैसा रिश्ता होता है, जिसका आशय है नदी केवल जल नहीं, बल्कि जीवन देने वाली माँ है। बच्चे की मासूमियत से दर्शक यह समझते हैं कि हम प्रकृति के साथ कैसे जुड़ते हैं और कैसे उसका नुकसान हमें भीतर से तोड़ता है।
इस फिल्म के एक सहयोगी गणेश ने बताया कि रिवर ऑफ रेज़ोनेंस फिल्म शरावती नदी और उसके इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों के बीच के रिश्ते और भावनात्मक लगाव को व्यक्त करती है। कर्नाटक के करावली क्षेत्र (पश्चिमी तट) में बहने वाली शरावती नदी पर मानवीय दखल और अप्राकृतिक बदलाव हो रहे हैं। इन बदलावों के पीछे मानवीय हस्तक्षेप है। उन्होंने बताया कि नदी अपने तट पर बसे लोगों और सुदूरवर्ती क्षेत्रों के लोगों को पीने का पानी, खेती, मत्स्य पालन में मदद करती है। इसके अलावा त्योहार, लोककथाएं भी इस नदी पर निर्भर हैं, लेकिन बदलती जलवायु, परियोजनाएं और मानव हस्तक्षेप इस संतुलन को तोड़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस फिल्म को गर्मी और मानसून दोनों मौसम में फिल्माया गया है ताकि दर्शकों को दिखाया जा सके कि दोनों ऋतुओं में नदी की स्थिति कैसी होती है।
इसी तरह एक अन्य अंग्रेजी फिल्म 'कावेरी: जीवन की नदी' की भी स्क्रीनिंग की गई। इस फिल्म में दिखाया गया है कि नदी एमएम हिल्स और कावेरी वन्यजीव अभयारण्यों से होकर बहती है, जिससे यह क्षेत्र सुंदर और प्राकृतिक वातावरण से हरा भरा दिखाई पड़ता है। फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि नदी के किनारे छोटे और बड़े जीव कैसे साथ रहते हैं। यह फिल्म प्रकृति के कई छिपे हुए रहस्यों को भी दिखाती है। नदी जीवन के संतुलन का एक अहम हिस्सा है।
इस दौरान 'गोताखोर: डिसपियरिंग डाइविंग कम्युनिटी', 'रिवर मैन ऑफ इंडिया', 'अर्थ गंगा', 'मोलाई– मैन बिहाइंड द फॉरेस्ट' और 'लद्दाख- लाइफ अलॉन्ग द इंडस' जैसी समाज को नदियों को लेकर जागरूक करने वाली अन्य फिल्में भी दिखाई गईं। इन फिल्मों ने दर्शकों को यह समझने में मदद की कि नदियां कैसे हमारे जीवन और भू-दृश्य को आकार देती हैं।
नदी उत्सव का मुख्य उद्देश्य विभिन्न कला माध्यमों से जनता को नदियों के प्रति जागरूक करना और उनसे जोड़ना है। इस वर्ष का विषय 'रिवरस्केप डायनेमिक्स, चेंजेंस एंड कंटिन्युटी' (नदियों के बदलते परिदृश्य और उनकी निरंतरता) रहा। इस दौरान राष्ट्रीय संगोष्ठी, वृत्तचित्र फिल्मोत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियों के माध्यम से नदियों के विभिन्न आयामों को गहराई से समझने का प्रयास किया गया। इस उत्सव के लिए 80 से अधिक प्रविष्टियां आई थीं, जिनमें से 36 फिल्मों का प्रदर्शन किया गया और सर्वश्रेष्ठ तीन फिल्मों को पुरस्कार भी दिए जाएंगे।
नदी उत्सव के दौरान संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसमें देशभर के प्रतिष्ठित विद्वानों और विशेषज्ञों ने भाग लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी के लिए 300 से अधिक शोध पत्र प्राप्त हुए थे, जिनमें से 45 चुने हुए पत्रों को अलग-अलग सत्रों में प्रस्तुत किया गया। इसमें नदियों के सांस्कृतिक, पारिस्थितिक और कलात्मक पहलुओं पर गहन चर्चा हुई।
समारोह में कई प्रसिद्ध कलाकारों में गुरु सुधा रघुरामन का शास्त्रीय गायन, कपिल पांडे की 'गंगास कर्स' (कहानी), हिमांशु वाजपेयी और प्रज्ञा की 'गंगा गाथा' (दास्तानगोई), सौरव मोनी व टीम ने बंगाल की नदी गीत पर प्रस्तुति दी। उत्सव में समकालीन कला, छायाचित्र, कालीघाट पेंटिंग और नदी की कविताओं की प्रदर्शनी लगाई गई। बच्चों द्वारा बनाई गई कालीघाट पेंटिंग के क्यूरेटर अनुज अग्रवाल रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रद्धा द्विवेदी