डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी : राष्ट्रीय एकता-अखंडता के पर्याय

युगवार्ता    24-Jun-2025   
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डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए राष्ट्र सर्वोपरि था। इसलिए उन्होंने सत्ता का त्याग करके देश की एकता और अखंडता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। वह ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान’ के विरुद्ध थे। डॉक्टर मुखर्जी ने स्वतंत्र भारत का पहला राष्ट्रवादी आंदोलन खड़ा किया था। भारत के पुनर्निर्माण के उद्देश्य से डॉक्टर मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी। आज यदि लोग जम्मू-कश्मीर में बिना परमिट के जा सकते हैं और पश्चिम बंगाल भारत का अभिन्न अंग है, तो इसके पीछे डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान है।

श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी  
महान शिक्षाविद, प्रखर राष्ट्रवादी, चिंतक, विचारक और भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है। डॉ साहब ने कहा था- ‘राष्ट्रीय एकता की धरातल पर ही सुनहरे भविष्य के नींव रखी जा सकती है।’ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के रूप में देश को एक ऐसा दूरदर्शी नेता मिला, जिसने भारत की समस्याओं के मूल कारणों और उसके स्थाई समाधानों पर जोर दिया। उनके लिए जीवन पर्यंत संघर्ष किया। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर केंद्रित जनसंघ और आज की भारतीय जनता पार्टी डॉक्टर मुखर्जी की ही दूरदर्शिता परिणाम है। इन्होंने शिक्षा और औद्योगिक क्षेत्र में सुधार के लिए कई अभिनव कार्य किए। डॉ. मुखर्जी शिक्षा की गुणवत्ता और शोध कार्यों के भी बहुत बड़े पक्षधर थे। कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाए रखने एवं देश के एकता और अखंडता के लिए उनका त्याग समर्पण और बलिदान हम देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।
मानवता के उपासक, प्रखर राष्ट्रवादी विचारक, महान शिक्षाविद, जनसंघ संस्थापक व हमारे पथ प्रदर्शक डॉ. मुखर्जी ने कहा था, ‘हम उन्नति करेंगे। हम एक होंगे। हम एक ऐसे देश में रहेंगे, जिसका भाग्य केवल हमारे बच्चों के हाथ में होगा। एक स्वतंत्र और हिंदुस्तान का झंडा हमेशा शांति, प्रगति और आजादी की प्रतिष्ठा की घोषणा करेगा। जो भी कार्य आरंभ करें, उसे गंभीरता से पूर्ण करें और तब तक संतुष्ट न हो, जब तक अपना सर्वश्रेष्ठ ना दे दे।’
‘जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है’, यह नारा सच हुआ। आज कश्मीर शांत और अखंड भारत का हिस्सा है। अनुच्छेद 370 अब कड़वा अतीत बन गई है और 35 ए पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। एक बार डॉ मुखर्जी ने कहा था कि वही राष्ट्र वास्तव में महान है, जिसके पास सैनिक शक्ति और ताकत है। किंतु वह राष्ट्र स्वार्थ के लिए कभी उन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करता है। जम्मू-कश्मीर की समस्या को पहचानने और इसके समूल निस्तारण के लिए पुरजोर आवाज उठाने वाले डॉ. मुखर्जी ही थे। 1947 के बाद सत्ता में आई, कांग्रेस के द्वारा देश पर थोपी जा रही, अभारतीयता तथा आयातित पश्चिमी विचारधाराओं का तार्किक विरोध कर भारत, भारतीय एवं भारतीयता के शाश्वत विचारों के अनुरूप राजनीतिक विकास देश को देने वाले डॉ. मुखर्जी ही हमारे अग्रदूत, हमारे पथ प्रदर्शक थे। आज की भारतीय जनता पार्टी का परिदृश्य, स्वरूप, आधारशिला, आधार स्तंभ, प्रकाश पुंज डॉ मुखर्जी ही हैं।
उन्होंने 1951 में भारतीय जन संघ की स्थापना की। वही बाद में, 1980 को भारतीय जनता पार्टी का आधार बना। उन्होंने पं. जवाहरलाल नेहरू सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में कार्य किया, लेकिन कांग्रेस की गलत नीतियों और तुष्टीकरण से लेकर भारतीय संस्कृति के शाश्वत मूल्य के विरुद्ध कार्य करने वाली राष्ट्रीय विरोधी कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था। उन्होंने संसद में एक मजबूत विपक्ष के रूप में कार्य किया। सरकार की गलत नीतियों पर सवाल उठाने तथा संसद में जनता की आवाज बनकर भारत का प्रतिनिधित्व एक सांसद के रूप में किया। उन्होंने अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक न्याय के लिए काम किया। बंगाल के विभाजन के बाद उन्होंने शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए काम किया और उनके अधिकारों के रक्षा के लिए आवाज उठाई।
“ ‘जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है’, यह नारा सच हुआ। आज कश्मीर शांत और अखंड भारत का हिस्सा है। अनुच्छेद 370 अब कड़वा अतीत बन गई है और 35 ए पूरी तरह से खत्म हो चुकी है।”
डॉ मुखर्जी का जीवन वृत्त
6 जुलाई 1901 को कोलकाता के अत्यंत प्रतिष्ठित परिवार में डॉक्टर मुखर्जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे देश के प्रख्यात शिक्षाविद के रूप में प्रसिद्ध थे। डॉ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक पास किया और 1921 में बीए की उपाधि ली। 1923 में लॉ किया। फिर वे विदेश चले गए और 1926 में इंग्लैंड से बैरिस्टर बन कर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए, उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्या अध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित कर ली थी। 33 वर्ष की अल्पायु में ही वह कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वह सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। एक विचारक, चिंतक, शिक्षाविद, प्रख्यात वक्ता के रूप में उनकी ख्याति निरंतर देश में बढ़ती चली गई।
राजनीतिक जीवन
डॉ मुखर्जी ने स्वेच्छा से राष्ट्रीय अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। डॉ मुख़र्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धांतवादी थे। उन्होंने बहुत से गैर कांग्रेसी हिंदुओं की मदद से कृषक प्रजापति से मिलकर प्रगतिशील गठबंधन का निर्माण किया। इस सरकार में वह वित्त मंत्री बने। इसी समय में सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिंदू महासभा में सम्मिलित हुए।
मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था। वहां सांप्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। सांप्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने संकल्प लिया कि बंगाल के हिंदुओं की उपेक्षा ना हो।
जनसंघ की स्थापना
डॉ. मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की मांग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खंडित भारत के लिए बचा लिया। गांधी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वह भारत के पहले मंत्रिमंडल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई। संविधान सभा और प्रांतीय संसद के सदस्य और केंद्रीय मंत्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया, लेकिन उनके राष्ट्रवादी चिंतन के चलते अन्य नेताओं से मध्य बराबर बने रहे। राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपने सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनाई, जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। अक्टूबर 1951 में भारतीय जनसंघ का उद्भव हुआ।
1942 में ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न राजनीतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेलों में डाल दिया था। डॉक्टर मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक है। हम एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। लेकिन उस समय, जो कांग्रेसी नेतृत्व था, उसकी वजह से 1946 में मुस्लिम लीग ने जंग की राह पकड़ ली और राष्ट्र का विभाजन हुआ। ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की गुप्त योजना और षड्यंत्र को कांग्रेस के नेताओं ने अखंड भारत संबंधी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया था।
(लेखक भारत सरकार के जनजातीय मामले के केंद्रीय राज्य मंत्री हैं।)
 
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दुर्गादास उइके

दुर्गा दास उइके, जिन्हें डीडी उइके के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं। वह 2019 के भारतीय आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में बैतूल, मध्य प्रदेश से भारत की संसद के निचले सदन लोकसभा के लिए चुने गए। राजनीति में आने से पहले वे जाने-माने शिक्षक थे।